सालो से पटरियों पर जमी धूल
पर्यावरण संबंधित निर्देशों का ऊर्जांचल में कोई असर नहीं दिखाई दे रहा है। प्रदूषण से वातावरण पूर्णतया विषाक्त हो गया है। कोल डस्ट की भयावहता से लोग सांस भी नहीं ले पा रहे हैं। कोयले व राख के कण जहां फेफड़े को छलनी कर रहे हैं वहीं आंखों पर भी व्यापक दुष्प्रभाव पड़ रहा है। सड़कों पर चल रहे वाहनों के पीछे उड़ती धूल से कुछ मीटर की दूरी भी नहीं दिखाई पड़ रही है। जिससे दिन में ही मुख्य मार्ग पर अंधेरा छा जाने जैसा प्रतीत हो रहा है। सबसे दयनीय स्थिति दो पहिया वाहन चालकों एवं राहगीरों की है। सड़क के किनारे धूल की मोटी परत एकत्रित हो गई है। कहीं-कहीं यह धूल सड़क से भी ऊंची हो गई है। सड़क पर बड़े वाहनों से बचने के लिए दो पहिया वाहन चालक कोल डस्ट की मोटी परत में फंस कर धूल की चादर ओढ़ ले रहे हैं। बीना-औड़ी के बीच का सफर आए दिन जानलेवा साबित हो रहा है। कोयला ढुलाई में लगे ट्रेलर व हाइवा कोढ़ में खाज का काम कर रहे हैं। प्रदूषण निवारण हेतु प्रशासन, परियोजना प्रबंधन के साथ कई बार एक्शन प्लान निर्धारित किए गए, लेकिन इसका कभी भी अनुपालन नहीं किया गया। धूल के गुब्बार से पूरा क्षेत्र परेशान है।